कोबर का भूसन्नति सिध्दांत

प्रसिद्ध जर्मन विद्वान कोबर ने वलित पर्वतों की उत्पत्ति की व्याख्या के लिए भूसन्नति सिद्धांत ( कोबर का भूसन्नति सिध्दांत ) का प्रतिपादन कियाl वास्तव में उनका प्रमुख उद्देश्य प्राचीन दृढ़ भूखंडों तथा भूसन्नतियों में संबंध स्थापित करना थाl कोबर ने इस तरह अपने भूसन्नति सिद्धांत के आधार पर पर्वत निर्माण की क्रिया को समझाने का भरकस प्रयास किया हैl इनका सिद्धांत संकुचन शक्ति पर आधारित है पृथ्वी में संकुचन होने से उत्पन्न बल से अग्रदेशों में गति उत्पन्न होती है, जिससे प्रेरित होकर संपीडनात्मक बल के कारण भूसन्नति का मलवा वलित होकर पर्वत का रूप धारण करता है जहां पर आज पर्वत है, वहां पर पहले भूसन्नतिया थीl जिन्हें कोबर ने पर्वत निर्माण स्थल बताया है इन भूसन्नतियों के चारों ओर प्राचीन दृढ़ भूखंड थे, जिन्हें क्रेटोजेन बताया हैl कोबर ने अनुसार भूसन्नतियों लंबे तथा चौड़े जलपूर्ण गर्त थीl पर्वत निर्माण की पहली अवस्था भूसन्नति निर्माण की होती है जिसके दौरान पृथ्वी के संकुचन के कारण भूसन्नति का निर्माण होता है इसे भूसन्नति अवस्था कहते हैं प्रत्येक भूसन्नति के किनारे पर दृढ़ भूखंड होते हैं जिन्हें कोबर ने अग्रदेश बताया हैl इन दृढ़ भूखंडों के अपरदन से प्राप्त मलवा का नदियों द्वारा भूसन्नति में धीरे-धीरे जमाव होता रहता हैl

कोबर का भूसन्नति सिध्दांत

जब भूसन्नति भर जाती है तो पृथ्वी के संकुचन से उत्पन्न क्षैतिज संचलन के कारण भूसन्नति के दोनों अग्रदेश एक-दूसरे की ओर खिसकने लगते हैं इसे पर्वत निर्माण की अवस्था कहते हैंl जिस कारण मलवा वलित होकर पर्वत का रूप धारण कर लेता है भूसन्नति के दोनों किनारों पर दो पर्वत द्रोणियों का निर्माण होता है जिन्हें कोबर ने ‘रेंडकेटन‘ नाम दिया है भूसन्नति के मलवा का पूर्णत: या आंशिक रूप में वलित होना संपीडन के बल पर आधारित होता है यदि संपीड़न का बल सामान्य होता है तो केवल किनारे वाले भाग ही वलित होते हैंl तथा बीच का भाग वलन से अप्रभावित रहता हैl इस अप्रभावित भाग को कोबर ने स्वाशिनवर्ग की संज्ञा प्रदान की है जिसे सामान्य रूप से मध्य पिंड कहा जाता है जब संपीडन का बल सर्वाधिक सक्रिय होता है तो भूसन्नति का समस्त मलवा वलित हो जाता है तथा मध्य पिंड का निर्माण नहीं हो पाता हैl

कोबर ने अपने विशिष्ट मध्य पिंड के आधार पर विश्व के वलित पर्वत ओं की संरचना को स्पष्ट करने का प्रयास किया है टेथिज  भूसन्नति के उत्तर में यूरोप का स्थल भाग तथा दक्षिण अफ्रीका का दृढ़ भूखंड था इन दोनों अग्रदेशों के आमने-सामने सरकने के कारण अल्पाइन पर्वत श्रंखला का निर्माण हुआ अफ्रीका के उत्तर की ओर सरकने के कारण बेटीक कार्डीलरा, पेरेनिज प्राविंस श्रेणियाँ मुख्य आल्प्स, कार्पेथियंस, बाल्कन पर्वत तथा काकेशस का निर्माण हुआl इसके विपरीत यूरोपीय दृढ़ भूखंड के दक्षिण की ओर किसने खिसकने के कारण एटलस, एपिनाइन्स, डीनाराइट्स, हेलेनाइड्स आदि पर्वतों का निर्माण हुआ कार्पेथियंस तथा दिनारिक आल्प्स के मध्य वलन से अप्रभावित हंगेरी का मैदान मध्य पिंड का उदा प्रस्तुत करता हैl

हिमालय के निर्माण के विषय में कोबर ने बताया है कि पहले टेथिज नाम सागर था जिसके उत्तर में अंगारालैंड तथा दक्षिण में गोंडवानालैंड अग्रदेश के रूप में थे इयोसीन युग में दोनों आमने-सामने सरकने लगे जिस कारण टैथीज के दोनों किनारो पर तलछट में वलन पड़ने से उत्तर में कुनलुन पर्वत तथा दक्षिण में हिमालय की उत्तरी श्रेणी का निर्माण हुआ दोनों के बीच तिब्बत का पठार मध्य पिंड के रूप में बचा रहाl

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