ज्वार भाटा किसे कहते है, ज्वार भाटा क्या है

ज्वार भाटा

ज्वार भाटा किसे कहते हैं?

सूर्य तथा चंद्रमा की आकर्षण शक्तियों के कारण सागरीय जल के ऊपर उठने तथा गिरने को ज्वार भाटा कहां जाता हैl

सागरीय जल के ऊपर उठकर आगे ( तटकी ओर ) बढ़ने को ज्वार तथा उस समय निर्मित उच्च जल तल को उच्च ज्वार तथा सागरीय जल के नीचे गिरकर ( सागर की ओर ) पीछे लौटने को भाटा ( ebb ) तथा उससे निर्मित निम्न जल को निम्न ज्वार कहते हैं विभिन्न स्थानों पर ज्वार- भाटा की ऊंचाई में पर्याप्त भिन्नता होती हैl यह भिन्नता सागर में जल की गहराई, सागरीय तट की रूपरेखा तथा सागर के खुले होने या बंद होने पर आधारित होती हैl

ज्वार- भाटा उत्पन्न होने के क्या कारण है?

पृथ्वी के महासागरीय जल के ज्वार की उत्पत्ति चंद्रमा तथा सूर्य के आकर्षण बलों द्वारा होती है गुरुत्वाकर्षण द्वारा संपूर्ण में पृथ्वी सूर्य तथा चंद्रमा की ओर खींचती है परंतु इसका प्रभाव स्थल की अपेक्षा जल पर पड़ता है सूर्य का आकार चंद्रमा के आकार से तिन अरब गुना अधिक है, परंतु सूर्य पृथ्वी से चंद्रमा की अपेक्षा 300 गुना अधिक दूरी पर स्थित है इसीलिए चंद्रमा का ज्वार उत्पन्न करने वाला बल सूर्य के बल से 2.17 गुना अधिक l है यदि हम मान ले कि संपूर्ण पृथ्वी के चारों ओर समान गहराई वाले महासागरों में ने घेर रखा हैl चंद्रमा के गुरुत्वाकर्षण शक्ति उस पर अपना प्रभाव डाल रही है बिंदु ‘A’ चंद्रमा के सबसे निकट है इसलिए एक बिंदु पर चंद्रमा के गुरुत्वाकर्षण शक्ति सबसे अधिक होगी बिंदु ‘B’ पर उससे कम तथा बिंदु ‘C’ पर सबसे कम गुरुत्वाकर्षण शक्ति काम करेगीl इस शक्ति के प्रभावधीन बिंदु ‘A’ पर जल का ज्वारीय उभार ऊपर को उठता है बिंदु ‘C’ पर भी एक एसा ही उभार ऊपर को उठता है इसका कारण पृथ्वी के घूर्णन से उत्पन्न हुई अपकेंद्रीय सकती हैl इस प्रकार पृथ्वी पर दो एक- दूसरे से विपरीत स्थानों पर ज्वार उत्पन्न हो जाता हैl इसके विपरीत बिंदु ‘D’ तथा ‘E’ पर जल स्तर नीचा हो जाता है मतलब भाटा आता हैl

ज्वार के प्रकार Types of Tide 

महासागरीय जल में उत्पन्न होने वाला ज्वार पृथ्वी, सूर्य व चंद्रमा की सापेक्ष दूरियों तथा स्थितियों के कारण भिन्न-भिन्न रूपों में उत्पन्न होता है ये प्रत्यक्ष रूप से तो चंद्रमा एवं सूर्य की आकर्षण शक्तियों से संबंध है चंद्रमा अपनी दूरी पर( प. से पू दिशा में ) घूमते हुए परिक्रमा करता हैl इसी प्रकार पृथ्वी सूर्य की परिक्रमा करती है इस परिक्रमण के दौरान पृथ्वी, सूर्य तथा चंद्रमा की विभिन्न स्थितियां उत्पन्न होकर विभिन्न प्रकार के ज्वार उत्पन्न करती हैl

1 ) पूर्ण दीर्घ ज्वार spring tide 

सूर्य तथा चंद्रमा की सापेक्ष स्थितियों में परिवर्तन होता रहता है जब सूर्य पृथ्वी तथा चंद्रमा एक सरल रेखा में होते हैंl तो इस स्थिति को युती- वियुती या सिजिगी कहते हैं जब सूर्य और चंद्रमा दोनों पृथ्वी के एक ही और होते हैं तो उसे युति कहते हैं तथा जब सूर्य और के मध्य में पृथ्वी होती है जो उसे वियुती कहते हैं युती की स्थिति अमावस्या तथा वियुती की स्थिति पूर्णमासी को होती है इस प्रकार सूर्य एवं चंद्रमा की सम्मिलित आकर्षण शक्ति से साधारण ज्वार की अपेक्षा 20% अधिक ऊंचा होता हैl

Tide-Ebb-ज्वार-भाटा

2 ) लघु ज्वार 

साधारण ज्वार की अपेक्षा 20% कम ऊंचे ज्वार को लघु ज्वार कहते हैं जो सूर्य, पृथ्वी और चंद्रमा के समकोण स्थिति में उत्पन्न होते हैंl यह स्थिति मास के शुक्ल पक्ष तथा कृष्ण पक्ष की अष्टमी को बनती हैl इस समय सूर्य एवं चंद्रमा के ज्वार उत्पन्न करने वाले बल भिन्न दिशा में कार्य करते हैं सूर्य के सामने आने वाली पृथ्वी के भाग में ज्वार आता है लेकिन चंद्रमा के सम्मुख स्थित भाग में आकर्षण शक्ति अधिक होने के कारण उच्च ज्वार आता है जबकि सूर्य के सामने आने वाले स्थान पर ऊंचा भाटा आता हैl

3 ) अयनवृत्तीय एवं विषुव ज्वार

सूर्य के समान चंद्रमा की भूमध्य रेखा के संदर्भ में उत्तरायण तथा दक्षिणायन स्थितियां होती है चंद्रमा इसे 27.5 दिन के संयुति मास में पूरा कर लेता है चंद्रमा का उत्तर की ओर अधिकतम झुकाम होता है चंद्रमा की किरणें कर्क रेखा के पास लंबवत पड़ती है जिस कारण उच्च ज्वार आता है जबकि कर्क रेखा के ज्वार केंद्र के विपरीत स्थित मकर रेखा के सहारे भी उच्च ज्वार आता है कर्क रेखा के ज्वार केंद्र के विपरीत स्थिति मकर रेखा के सहारे भी उच्च ज्वार आता हैl इस प्रकार कर्क तथा मकर रेखाओ के समीप आने वाला क्रमिक ज्वार तथा भाटा असमान ऊंचाई वाले होते हैं यह स्थिति महीने में दो बार होती है यह जब कि चंद्रमा का अधिकतम झुकाव उत्तरायण कर्क रेखा के पास तथा दक्षिणायन मकर रेखा के पास की स्थितियों के समय होता है इन स्थितियों में कर्क तथा मकर रेखाओं के पास की स्थितियो के समय होता है इन स्थितियों में कर्क तथा मकर रेखाओं के पास अमे वाले ज्वार को अयनवृत्तिय ज्वार कहते है प्रत्येक महीने में चन्द्रमा भूमध्यरेखा पर लम्बवत होता है जिस कारन दैनिक असमानता लुप्त हो जाती है क्योकि दो उच्च ज्वारों की उचाई तथा दो निम्न ज्वारों की उचाई सामान होती है इस भूमध्यरेखीय ज्वार कहते है

4 ) अपभू तथा उपभू ज्वार

चंद्रमा का परिक्रमण पथ अंडाकार है जिसके सहारे पृथ्वी की करणी परिक्रमा करते समय चंद्रमा एवं पृथ्वी की दो सापेक्ष स्थितियां बनती है प्रथम जब चंद्रमा पृथ्वी के निकट होता है तो चंद्रमा की उपभू स्थिति होती है इस समय पृथ्वी के केंद्र से चंद्रमा के केंद्र की दूरी 356000 किमी होती है इस समय चंद्रमा की ज्वारोत्पादक शक्ति सर्वाधिक होती है जिस कारण दीर्घ ज्वार आता है यह सामान्य ज्वार से 20% अधिक होता है

इसके विपरीत जब चंद्रमा पृथ्वी से अधिकतम दूरी पर स्थित होता है तो इससे उसे अपभू  कहते हैं इस समय चंद्रमा के ज्वारोंत्पादक शक्ति न्यूनतम होती है परिणाम स्वरूप लघु ज्वार उत्पन्न होता है जो सामान्य ज्वार से 20% कम रहता है इसे अपभू या भूमि उच्च ज्वार कहते हैंl

5 ) दैनिक ज्वार

किसी स्थान पर जब दिन के केवल एक ही द्वारा उत्पन्न होता है तो उसे दैनिक ज्वार कहते हैं इस प्रकार के ज्वार 24 घंटे 52 मिनट के अंतराल पर उत्पन्न होते हैं यह ज्वार चंद्रमा के झुकाव से आता है

6 ) अर्ध दैनिक ज्वार

किसी स्थान पर प्रतिदिन समान ऊंचाई वाले दो दीर्घ एवं दो निम्न ज्वार उत्पन्न होते हैं तो उसे अर्ध दैनिक ज्वार कहते हैं इनमें ज्वार 12 घंटे 26 मिनट बाद आता हैl

7 ) मिश्रित ज्वार 

किसी स्थान में आने वाले असमान अर्ध्द दैनिक ज्वार को मिश्रित ज्वार कहते हैं अर्थात दिन में 2 ज्वार तो आते हैं परंतु एक ज्वार की ऊंचाई दूसरे ज्वार की अपेक्षा कम तथा एक भाटी की ऊंचाई दूसरे की अपेक्षा कम होती हैl

ज्वार का समय

प्रत्येक स्थान पर सामान्य तौर पर दिन में दो बार ज्वार आता है क्योंकि पृथ्वी अपनी धुरी पर लगभग 24 घंटों में एक पूर्ण चक्कर लगा लेती है अतः प्रत्येक स्थान पर 12 घंटे के बाद ज्वार आना चाहिए अर्थात प्रत्येक दिन ज्वार एक ही समय पर आना चाहिए, परंतु ऐसा नहीं हैl प्रतिदिन ज्वार लगभग 26 मिनट देर से आता है इसका प्रमुख कारण चंद्रमा का भी अपनी धुरी पर चक्कर लगाने लगाते हुए पृथ्वी की परिक्रमा करना है पृथ्वी पश्चिम से पूर्व दिशा में चक्कर लगाती है परिणाम स्वरूप ज्वार केंद्र पूर्व से पश्चिम दिशा की ओर अग्रसर होते हैं ज्वार केंद्र जब अपना एक पूरा चक्कर लगा लेता है तो चंद्रमा उसके कुछ आगे निकल गया रहता है क्योंकि यह भी पृथ्वी की परिक्रमा करता है परिणाम स्वरूप ज्वार केंद्र को चंद्रमा के नीचे पहुंचने के लिए लगभग 52 मिनट की और यात्रा करनी पडती है इस तरह एक ज्वार केंद्र को चन्द्रमा के सामने अने मे 24 घंटे 52 मिनट खर्च करने पड़ते है परन्तु इसी समय ज्वार केंद्र के विपरीत स्थित भाग में ज्वार 26 मिनट देरी ( 12. घंटे 26 मिनिट ) से आयेगाl

 

 

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