पृथ्वी की आंतरिक संरचना
पृथ्वी की उत्पत्ति की भांति पृथ्वी की आंतरिक संरचना भी मनुष्य के लिए एक पहेली बनी हुई है l इसका कारण यह है कि हम पृथ्वी के अंदर अधिक गहराई तक जाकर स्वयं अपनी आंखों से नहीं देख सकते हैंl यद्यपि पृथ्वी का आंतरिक भाग भूगोल के अध्ययन के क्षेत्र से बाहर हैl तथापि पृथ्वी की सतह पर होने वाली परिवर्तनों ( जो पृथ्वी की आंतरिक गहराइयों के कार्यरत बलो से संबंध है ) कि प्रकृति को समझने के लिए पृथ्वी के आंतरिक भाग के बारे में जानना अनिवार्य हैl विश्व की सबसे अधिक गहरी खाना दक्षिण अफ्रीका की सोने की खान हैl जिसकी गहराई केवल 4.8 किलोमीटर हैl आधुनिक यंत्रों से खनिज तेल की प्राप्ति के लिए खोदे गए कूए भी 10 या 12 कि.मी. से अधिक नहीं हैl यह पृथ्वी के धरातल से केंद्र तक 6371 कि.मी. की गहराई की तुलना में नगण्य है कहने का तात्पर्य यह है कि पृथ्वी की आंतरिक संरचना के विषय में सही जानकारी नहीं प्राप्त की जा सकतीl भूकंप विज्ञान से कुछ अविश्वसनीय बातें अवश्य ज्ञात हो जाती है पृथ्वी की आंतरिक संरचना के विषय में जानकारी देने वाले स्रोतों को 3 वर्गों में विभाजित किया जा सकता हैl

1 ) अप्राकृतिक स्रोत
- घनत्व 2. दबाव ३. तापमान
2 ) पृथ्वी की उत्पत्ति से संबंधित सिद्धांतों के साक्ष्य
3 ) प्राकृतिक साधन, अप्राकृतिक साधन
i ) घनत्व : पृथ्वी के भू-पटल का अधिकांश भाग महाद्वीपों का बना हुआ है जिसकी रचना अवसादी चट्टानों से हुई हैl इसका औसत घनत्व 2.7 हैl इनके नीचे आग्नेय चट्टाने है जिन का घनत्व 3.00 है तो कही पर 3.5 हैl परंतु समस्त पृथ्वी का औसत घनत्व 5.5 हैl इस आधार पर यह निष्कर्ष निकलता है कि पृथ्वी के अंतर्गत औसत घनत्व 11 माना जाता हैl जो जल से 7 या 8 गुना अधिक भारी हैl न्यूटन के गुरुत्वाकर्षण सिद्धांत के आधार पर कैवेडिश ने 1798 में पृथ्वी के औसत घनत्व को मापने का प्रयास कियाl
ii ) दबाव : क्रोड़ ( core ) के अधिक घनत्व के संबंध में चट्टानों के भार व दबाव का संदर्भ लिया जा सकता हैl पृथ्वी के अंतरतम का अधिक घनत्व बढ़ते भार के कारण बढ़ते हुए दबाव के कारण है क्योंकि बढ़ते हुए दबाव के साथ चट्टान का घनत्व भी बढ़ जाता हैl परंतु आधुनिक प्रयोगों द्वारा यह प्रमाणित होता हैl कि पृथ्वी के अंतरतम का घनत्व अधिक दबाव के कारण नहीं है तो अंतरतम स्वयं धातु का बना है जिससे पदार्थ स्वयं अधिक घनत्व वाले तथा भारी हैl पृथ्वी का अंतरतम निकल तथा लौह के मिश्रण का बना है यह तथ्य पृथ्वी की चुंबकीय दशा को भी प्रमाणित करता हैl
iii ) तापमान : साधारणत; पृथ्वी के भीतरी भागों में जाने से तापमान में वृद्धि होती है प्रत्येक 32 मीटर की गहराई पर तापमान में 1° c की वृद्धि होती हैl परंतु बढ़ती गहराई के साथ तापमान की वृद्धि दर में भी गिरावट आती है 100 किमी की गहराई में प्रत्येक किमी में 12°c की वृद्धि होती हैl इसके बाद के 300 किलोमीटर की गहराई में प्रत्येक किलोमीटर पर 2°c एवं उसके पश्चात प्रत्येक किमी की गहराई पर 1°c की वृद्धि होती है अधिकांश रेडियो सक्रिय तत्व पृथ्वी की सबसे ऊपरी परत में ही केंद्रित हैl जिनके द्वारा अत्याधिक ऊष्मा जनित होती है इससे प्रकट होता है कि तापमान में गहराई के साथ वृद्धि की दर घटती जाती है जो केंद्र में 6000°c होता हैl
पृथ्वी की उत्पत्ति से संबंधित सिद्धांतों के साक्ष्य
पृथ्वी की उत्पत्ति से संबंधित गृहाणु परिकल्पना जहाँ पृथ्वी के अंतरतम को ठोस मानवी है वही ज्वारीय परिकल्पना एवं वायव्य निहारिका परिकल्पना मे पृथ्वी के आतंरिक भाग के सम्बन्ध में दो ही संभावनाएं बनती है या तो यह ठोस हो सकती है या तरल.
प्राकृतिक साधन
A ) ज्वालामुखी क्रिया : ज्वालामुखी क्रिया के द्वारा भूसतह पर लावा का विस्तार होता है इस आधार पर विभिन्न भू वैज्ञानिकों का मत है कि भूगर्भ में द्रवावस्था वाली परत पाई जाती है यहीं से ज्वालामुखी क्रिया के दौरान तप्त लावा तथा गैस भूपटल पर आती है स्पष्ट है कि ज्वालामुखी से नि:स्तृत पदार्थों की प्रकृति के आधार पर पृथ्वी की आंतरिक संरचना के बारे में सामान्य जानकारी अवश्य प्राप्त होती हैl
B ) भूकंप विज्ञान के साक्ष्य : भूकंप के आने से पृथ्वी में कम्पन पैदा होता है जिससे भूकंपीय लहरें उठती हैl इन लहरों का अध्ययन एक विशेष यंत्र की सहायता से किया जाता हैl जिसे सिस्मोग्राफ कहते हैं जिस स्थान पर भूकंप प्रारंभ होता है उस स्थान को भूकंप मूल ( Focus ) कहते हैं यह भूतल के नीचे पर्याप्त गहराई पर होता है यह भूकंपीय लहरों का ज्ञान सर्वप्रथम होता हैl इस स्थान को भूकंप केंद्र कहते हैं भूकंप की घटना के समय विभिन्न प्रकार की उत्पन्न लहरों को सामान्यता तीन वर्गो में विभाजित किया जाता हैl
1 ) प्राथमिक लहरें ( Primary or P waves ) प्राथमिक लहरें, वे भूकंपीय लहरें हैं जो कि ध्वनि की लहर के समान होती है तथा उनके कणों की गति लहर की रेखा की सीधी में होती है यह सबसे अधिक वेगवान लहर होती है तथा ठोस भाग में अत्याधिक गति से प्रवाहित होती हैl
2 ) द्वितीय तथा गौण लहरें ( Transverse secondary or S waves ) इन्हें गौण तरंगों अथवा अनुप्रस्थ तरंगे भी कहते हैं इन तरंगों की संरचन तथा कणों के दोलन की दिशा एक दूसरे के समकोण पर होती है यह तरंगे प्रकाश तरंगों के समान होती है इनकी औसत गति 4 किलोमीटर प्रति सेकंड होती है यह ठोस माध्यम से ही गुजर सकती है और तरल माध्यम में लुप्त हो जाती है
3 ) धरातलीय लहरें ( Surface waves or L waves ) धरातलीय लहरें प्राय: पृथ्वी के ऊपरी भाग को ही प्रभावित करती है यह अत्यधिक प्रभावशाली लहरे होती है इन लहरों की सबसे अधिक लंबा मार्ग तय करना पड़ता है तथा यद्यपि इनकी गति सबसे कम होती है तथापि ये ( धरातलीय लहरें ) सबसे अधिक विनाशकारी होती है
भूकंप केंद्र के निकट P, S तथा L तीनों प्रकार की तरंगे पहुंचती है इसके पश्चात L तरंगे लुप्त हो जाती है और केवल P तथा S तरंगे ही आगे बढ़ती है सन 1909 ओल्डहम नामक विद्वान ने यह बताया कि भूकंप के केंद्र से 102° की दूरी पर S तरंगे लुप्त हो जाती है और P तरंगे काफी दुर्लभ हो जाती हैl भूकंप के केंद्र से 103° से 143° तक कोई भी भूकंपीय तरंगे नहीं पहुंचती है पृथ्वी के उस भाग को जहां कोई भी तरंग नहीं पहुंचती भूकंपी छाया क्षेत्र या छाया कटिबंध कहते है इस आधार पर यह प्रमाणित होता है कि पृथ्वी के आंतरिक भाग में तरल अवस्था में एक कोर है जो कि 2900 किमी से अधिक गहराई में केंद्र के चारों ओर विस्तृत है इस आधार पर विद्वानों ने यह अनुमान लगाया है कि पृथ्वी के कोर का लोहा तथा निकल तरल अवस्था में होगाl
भूकम्पीय असम्बध्दताए ( seismic discontinuities )
- क्रस्ट एवं उपरी मैन्टिल की विभाजक सीमा को मोहो असम्बध्द्ता कहते है इसका नामकरण A. Mohorovicic के नाम पर किया गया है इसका औसत गहराई महासागरों के निचे 0.2 से 10 किमी तथा महाद्वीपो के निचे 32 किमी तक मणि जाती है
- निचली मैन्टिल एवं बाह्य अंतरतम की विभाजक सीमा को गुटेनबर्ग असम्बध्द्ता या विचर्ट असम्बध्द्ताकहते है
- उपरी मैन्टिल एवं निचले मैन्टिल के बीच घनत्व संबधी यह असम्बध्द्ता रेपेटी असम्बध्द्ता कहते है
यह भी पढ़े – वेगनर का महाद्वीपीय प्रवाह सिद्धांत
4 thoughts on “पृथ्वी की आंतरिक संरचना”