प्लेट विवर्तनिकी स्थलीय दृढ़ भूखंडों को ‘प्लेट’ कहा जाता हैl प्लेट शब्द का नामकरण सर्वप्रथम टूजो विल्सन के द्वारा सन 1965 में किया गयाl 1960 में हैरी हैस ने महाद्वीपीय भागों से संबंधित अपना प्लेट विवर्तनिक सिध्दांत प्रस्तुत कियाl जिसके अनुसार सभी महाद्वीप एवं महासागर विभिन्न प्लेटों के ऊपर स्थित हैl जो हमेशा संचरवशील हैl इनकी गति के कारण ही कार्बोनिफेरस काल का विशाल स्थलखंड पेंजिया का विखंडन हुआ तथा विखंडन से निर्मित प्लेटो के स्थानांतरण से महाद्वीप तथा महासागरों को वर्तमान स्वरूप प्राप्त हुआl
प्लेट संकल्पना का प्रादुर्भाव दो तथ्यों के आधार पर हुआ हैl 1 ) महाद्वीपीय प्रवाह की संकल्पना तथा 2 ) सागर तली के प्रसार की संकल्पना l स्थलमंडल को आंतरिक रुप से दृढ़ प्लेट का बना हुआ माना गया हैl अब तक 6 प्रमुख तथा 20 लघु प्लेट का निर्धारण किया गया है 1 ) यूरेशियन प्लेट 2) इंडियन प्लेट 3 ) अफ्रीकी प्लेट 4 ) अमेरिकी प्लेट 5 ) पैसिफिक प्लेट 6 ) अंटार्कटिका प्लेट
लघु प्लेट बड़े प्लेट से स्वतंत्र होकर गतिशील हो सकते हैं इन प्लेटों के किनारे ही सर्वाधिक महत्वपूर्ण होते हैं क्योंकि इन्हीं किनारों के सहारे ही भूकंपीय, ज्वालामुखी तथा विवर्तनिक घटनाएं घटित होती है अतः प्लेट के इन्हीं किनारों का अध्ययन महत्वपूर्ण हैl
सामान्य रूप में प्लेट के किनारों तथा सीमा को तीन प्रकारों में विभक्त किया गया है
1 ) विनाशी प्लेट सीमा तथा किनारा Convergent boundary –
दो प्लेट आमने-सामने अभिसरित होते हैंl इन किनारों के सहारे पदार्थ निचली मैटिंल में क्षेपण द्वारा व्ययित होता है अर्थात इन किनारों पर प्लेट का पदार्थ नीचे चला जाता हैl और प्लेट के किनारों में ह्रास होता हैl इस प्लेट सीमा को अभिसारी सीमा convergent boundary भी कहते हैंl
2 ) रचनात्मक प्लेट किनारा –
ये वे सीमांत है जहां मैग्मा ऊपर उठकर विपरीत दिशाओं में प्रवाहित होता हैl इस क्रिया से प्लेटे एक दूसरे से दूर हटती है तथा महासागरीय तली का प्रसरण होता है ऐसे सीमांतों पर ज्वालामुखी क्रिया अधिक होती हैl क्योंकि ऐसे सिमातों के सहारे मैग्मा के निस्सृत होकर जमा होने से नए पहल का निर्माण होता हैl अतः इन्हें रचनात्मक प्लेट किनारा भी कहा जाता हैl

3 ) संरक्षी प्लेट सीमा तथा किनारा –
संरक्षी किनारों के सहारे दो प्लेट एक दूसरे के बगल से खिसकते हैं जिस कारण रूपान्तर भ्रश trasform fault का सृजन होता हैl यहां संवहन धाराए एक- दूसरे के पार्श्व में चलती है इनसे नति लंब भ्रंश उत्पन्न होते हैं इन्हीं संरक्षि प्लेट किनारे भी करते हैं क्योंकि इन किनारों पर न तो नए पटल का निर्माण होता है और ना ही विनाश होता हैl
प्लेटो की गति के कारण –
प्लेट विवर्तनिकी ( प्लेट विवर्तनिक सिध्दांत ) के लिए किसी चालन बल की आवश्यकता होती है यह बल मैंटल में प्रवाहित संवहनीय धाराओं के रूप में बताया गया हैl
- संपूर्ण मैंटल को घेरे हुए संवहन क्रिया l
- केवल दुर्लभता मंडल तक सीमित संवहन क्रिया l
जिस स्थान पर दो तापजनित संवहनीय तरंगे एक दूसरे से विपरीत दिशा में अलग होकर प्रवाहित होती हैl वहां पर अपसरण होने से तनाव की स्थिति शक्ति पैदा हो जाती है जिस कारण स्थल भाग दो खंडों में विभक्त होकर दो विपरीत दिशाओं में हट जाते हैं तथा बीच वाले खुले भाग में सागर का निर्माण हो जाता है यह स्थिति अपसारी सीमान्तो पर होती हैl
जिस स्थान पर दो केंद्रों से उठने वाली संवहनीय तरंगे पृथ्वी की पपड़ी के नीचे पहुंचकर एक दूसरे की ओर प्रवाहित होती है तथा मुड़कर नीचे की ओर चली है तो वहां पर दबाव की शक्तियों के कारण धरातलीय भाग का अवतलन हो जाता है तथा पर्वत निर्माण तथा वलन संबंधि घटनाएं एवं उससे संबंधित ज्वालामुखी तथा भूकंप की क्रियाएं होती है
संवहनीय धाराओं की उत्पत्ति के लिए आवश्यक ऊर्जा स्त्रोत के विषय में भी विद्वानों में भिन्न मत है किंतु रेडियो सक्रिय पदार्थ जनित ऊर्जा के विषय में अधिकांश भूगर्भशास्त्री सहमत हैl
यह बी पढ़े – ज्वार-भाटा
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