महासागरीय नितल के उच्चावच – ग्लोब के लगभग तीन चौथाई भाग पर जलमंडल का विस्तार पाया जाता हैl पृथ्वी के कुल क्षेत्रफल 51.00 करोड़ वर्ग किमी के 36.17 करोड़ वर्ग किमी पर जलमंडल तथा 14.89 करोड वर्ग किलोमीटर पर स्थलमंडल का विस्तार मिलता हैl पृथ्वी पर दक्षिणी गोलार्ध में 81 % जल तथा 19 % भाग पर स्थल का विस्तार हैl इसी कारण दक्षिण गोलार्ध को जल गोलार्ध भी कहा जाता है इसके ठीक विपरीत उत्तरी गोलार्ध में 40% भाग पर जल है तथा 60 % भाग पर स्थल का विस्तार है स्थलीय भाग की अधिकता के कारण उत्तरी गोलार्ध को स्थल गोलार्द्ध भी कहा जाता हैl पृथ्वी पर उपस्थित जल की कुल मात्रा का 97.25 प्रतिशत भाग जल महासागरों में है जबकि 2.5 भाग ही स्वच्छ जल है या मीठा जल हैl महासागरों की औसत गहराई 3800 मीटर तथा स्थल की औसत ऊंचाई 840 मीटर बताई जाती है स्थलीय भागों की ऊंचाई एवं महासागरों की गहराई को ‘ उच्चतामितीय वक्र ‘ के द्वारा प्रदर्शित किया जाता है महाद्वीपीय किनारे से लेकर सागर की अगाध गहराई तक महासागरीय नितल के प्रमुख उच्चावच स्वरूप क्रमशः महाद्वीपीय मग्नतट, महाद्वीपीय मग्नढाल, गहन सागरीय मैदान, महासागरीय कटक तथा महासागरीय गर्त हैl
महाद्वीपीय मग्नतट – महाद्वीपों के किनारों का जो भाग महासागर के जल में डूबा रहता है और जिसका ढाल 1° से 3° तक रहता है गहराई 100 फैदम अथवा 180 मीटर होती हैl महाद्वीपीय मग्नतट कहलाता है मग्नतटों की चौड़ाई पर तटीय स्थलीय उच्चावच का नियंत्रण रहता है. जहां पर तट से लगे उच्च पर्वतीय भाग होते हैं वहां पर मग्नतट संकरे होते हैं इसके विपरीत जहां पर स्थलीय तटवर्ती भाग मैदान भाग है वहां पर मग्नतट अधिक विस्तृत होते हैं सबसे अधिक चौड़ा मन्नतट साइबेरिया के किनारे के साथ-साथ उत्तरी ध्रुव सागर में पाया जाता है भारत के पूर्वी तट पर मग्नतट की औसतन चौड़ाई 70 किमी है जबकि दक्षिण अमेरिका का पश्चिमी तट पर महाद्वीपीय मग्नतट लगभग अनुपस्थित है समस्त महासागरीय नितल के क्षेत्रफल के 8.6 % भाग पर मग्नतट पाए जाते हैं महाद्वीपीय मग्नतट अंध महासागर के 13.3 % भाग में फैला हुआ है प्रशांत महासागर में यह 5.7 % तथा हिंदी महासागर में 4.2 % भाग पर ही इसका विस्तार है.
महाद्वीपीय मग्नढाल – महाद्वीपीय मग्नतट और गहन सागरीय मैदान के बीच तीव्र ढाल वाले भाग को महाद्वीपीय मग्नढाल कहते हैं इसका औसत ढाल 2° से 5° तक तथा गहराई 200 से लगभग 3660 मीटर तक होती है समस्त महासागरीय क्षेत्रफल के 8.5 % भाग पर इसका विस्तार है अटलांटिक महासागर में 12.4 % प्रशांत महासागर में 7 % तथा हिंद महासागर में 6.5 % भाग पर मग्नढाल का विस्तार पाया जाता है यह महाद्वीपीय ढाल मग्नतट और महासागरीय नितल के बीच की कड़ी है यहीं पर महाद्वीपीय खंडों का अंत माना जाता है संसार के कई तटो के समीप इस महाद्वीपीय ढाल पर केनियन सदृश्य गहरी खाइया पायी जाती हैl
गहरे सागरीय मैदान – महासागरीय मैदान का विस्तार मुख्य रूप से महादेशीय ढाल और महासागरीय कटको के बीच पाया जाता है महाद्वीपीय ढाल समाप्त होते ही ढाल एकदम मंद पड़ जाता है और मैदान सदृश्य महासागर का गहरा तल होता है जिसे गहरे सागरीय मैदान कहते हैं इसकी औसत गहराई 3000 से 6000 मी तक होती हैl समस्त महासागरीय क्षेत्रफल के लगभग 75.9 % भाग पर सागरीय मैदान का विस्तार पाया जाता हैl परंतु एक महासागर से दूसरे महासागर में यह प्रतिशत बदलती रहती है जैसे प्रशांत महासागर में 80.3 %, हिंदी महासागर में 80.1 % तथा अटलांटिक महासागर में 54.9 % भाग पर सागरिया मैदान का विस्तार हैl इतना अधिकांश भाग समतल और आकृतिहीन हैl इन तलछटो में सिंधु पंख की प्रधानता है यह सिंधू पंक मुख्यता समुद्री जंतुओ तथा पौधों के अवशेष और ज्वालामुखी धूल द्वारा निर्मित है सबसे अधिक गहराई में लाल क्ले पायी जाती हैl
महासागरीय गर्त – ये गर्त महासागरों के सबसे गहरे भाग होते हैं जिसका तल महासागरों के औसत नितल से काफी नीचा होता है महासागरीय नितल के लगभग 7 % भाग पर फैला है इनके ढाल खड़े होते हैं इनकी स्थिति प्राय: तट के सहारे पर्वतीय मेखलाओं के सामने मिलती हैl ये गर्त सामान्यत: 5500 मी गहरे होते हैंl समस्त महासागरों में अब तक 57 गर्तों का पता चला है इनमें से 32 गर्त प्रशांत महासागर में, 19 गर्त अटालांटिक महासागर में, तथा 6 गर्त हिंदी महासागर में हैl विश्व का सबसे गहरा गर्त मेरियाना गर्त ( 11022 मी ) है जो प्रशांत महासागर की खाइयों में गुआम द्वीप माला के समीप है.
जलमग्न कटक – यह कुछ 100 किलोमीटर चौड़े तथा कई हजार किलोमीटर लंबी पर्वत श्रेणियों के समान होते हैं इनकी कुल लंबाई 75,000 किलोमीटर से भी अधिक है इनका निर्माण विभिन्न कारणों से हुआ है जिनमें विवर्तनिक शक्तियां महत्वपूर्ण है जब इनका ढाल तीव्र होता है तो ये पर्वत श्रेणियों की भांति होते हैं परंतु ढाल के मंद होने पर यह चौड़े पठारों के समान होते हैं ये मुख्यत: महासागरों के मध्य में पाए जाते हैं कहाँ- कहाँ इनके शिखर जलस्तर से ऊपर उठकर द्विपों का रूप धारण करते हैं अजोर्स तथा केपवर्दे द्वीप इसी प्रकार से बने हैl
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